काठमाण्डौ नेपाल (अमर छत्तीसगढ़) 29 जुलाई।
लोगस्स तीर्थंकर स्तुति का महान मंत्र है। इसकी साधना से साधक अपने आप को शक्ति संपन्न बना सकता है। लोगस्स भक्ति साहित्य की अमर , अलौकिक, रहस्यमयी, विशिष्ट रचना है। समग्र जैन समाज में अति लोकप्रिय है लोगस्स। आत्म- दर्शन के रहस्य निहित होने के कारण यह सबके लिए सुग्राह्य नहीं है। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रबुद्ध सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी ने स्थानीय महाश्रमण सभागार में आयोजित “लोगस्स साधना प्रयोग” विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किये।
मुनि रमेश कुमार जी ने आगे कहा- लोगस्स निर्वाण स्थिति का संपर्क सूत्र भी है।
इस सूत्र में छिपे अर्थ गांभीर्य से ही इस रहस्य को समझा जा सकता है। ‘लोगस्स’ के प्रारंभिक शब्द से लोक यात्रा का प्रारंभ होता हैऔर उसकी अंतिम पद्य का अंतिम चरण ‘सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु’ यह लोक यात्रा की पूर्णाहुति लोकान्त स्थान ही है।जहां सिद्ध परमात्मा रहते हैं। इस प्रकार लोगस्स निर्वाण स्थिति का संपर्क सूत्र है। मुनि रमेश कुमार जी ने बताया की मंत्र गर्भित स्तवन लोगस्स है। इसमे प्रयुक्त ह्रस्व,