काठमाण्डौ नेपाल (अमर छत्तीसगढ) 22 अगस्त।
स्वास्थ्य सप्ताह का आयोजन
फ्रेशनेश और फिटनेश रहने के सभी को जागरुक रहना चाहिए। वर्तमान के दूषित वातावरण में बहुत जरुरी होता है हम अपने तन, मन, बुद्धि और भावों को स्वस्थ रखने का अभ्यास करें।
शरीर में तीन दोष है। वात, पित्त और कफ । इन तीन दोषों के असंतुलन से रोग या बिमारी होती है। आज हम जीवन के इन तीन दोषों जो शरीर को ही नहीं जीवन को समझते हैं। जो को बीमार कर रखा है। जीवन को आगे बढने में अवरोध का काम करते हैं। रिश्तों को नष्ट करते हैं। हमारी गति प्रगति में रोड़ा बन जाते हैं। ये त्रिदोष है- आलस्य, चिंता, क्रोध। दोष क्या है ?
हमारा शरीर इंजन की तरह है। इंजन को चलाने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। उसी तरह शरीर की सारी गतिविधियां – वात, पित्त, कफ के द्वारा होती है। जब तक ये तीनों शरीर में सम होते हैं। तब तक शरीर निरोग और स्वस्थ होता है। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रबुद्ध सुशिष्य मुनिश्री रमेश कुमार जी ने आज तेरापंथ कक्ष स्थित महाश्रमण सभागार में आयोजित स्वास्थ्य सप्ताह के अंतर्गत आज “कैसे आये जिंदगी में फ्रेशनेश और फिटनेश” विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किये।
मुनि रमेश कुमार जी ने आगे कहा- आयुर्वेद प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति रही है। आयुर्वेद में कहा है- जिस व्यक्ति के त्रिदोष सम हो ( वात,पित्त,कफ) , अग्नि सम हो, सातों धातुसम हो, मल भी सम हो शरीर की सभी क्रियायें समान कार्य करें। इसके अलावा मन, सभी इन्द्रियां और आत्मा प्रसन्न होती है। वह मनुष्य स्वस्थ है। आपने फ्रेशनेश और फिटनेश कैसे रहा जा सकता है इसे विस्तार से समझाया।
मुनि रत्न कुमार जी ने भी इस अवसर पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये।
संप्रसारक
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा काठमाण्डौ नेपाल