-आचार्यश्री ने अलोभ की चेतना की दी प्रेरणा
-आचार्यश्री के श्रीमुख से आख्यान का श्रवण कर निहाल हो रही जनता
सूरत गुजरात(अमर छत्तीसगढ) 24 अगस्त।
जन-जन के कल्याण के लिए, जन-जन को सन्मार्ग दिखाने के लिए निरंतर अपनी मंगलवाणी प्रदान करने जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता भारत की डायमण्ड सिटि व सिल्क सिटि सूरत में वर्ष 2024 का मंगल चतुर्मास कर रहे हैं। चतुर्मास के दौरान आचार्यश्री की कल्याणवाणी का निरंतर प्रवाहित हो रही है और देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से गुरु सन्निधि में पहुंचने वाले श्रद्धालु इसका पूर्ण लाभ उठा रहे हैं।
वर्षा का समय है तो यदा-कदा वर्षा का दौर भी जारी शनिवार को सुबह से ही वर्षा का क्रम जारी था, तो इस कारण महावीर समवसरण में युगप्रधान आचार्यश्री का पदार्पण संभव नहीं हो पाया तो आचार्यश्री ने अपने प्रवास स्थल प्रेक्षा भवन से जनता को पावन पाथेय ही नहीं, आख्यान से भी लाभान्वित किया। आचार्यश्री की कल्याणी वाणी का श्रवण कर श्रद्धालु जनता निहाल थी। मंगल प्रवचन से पूर्व आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में भाजपा के पुरी सांसद श्री संबित पात्रा पहुंचे। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। तदुपरान्त उनका आचार्यश्री से वार्तालाप का क्रम भी रहा।

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के आधार पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मानव की चेतना में लोभ भी विद्यमान है तो साथ ही अलोभ की चेतना भी भीतर में स्थित होती है। लोभ की एक भाव है और अलोभ भी चित्त का एक धर्म है। वीतराग बनने के लिए लोभ से मुक्त होना होता है तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए वीतरागता की प्राप्ति आवश्यक होती है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए वीतरागता एक कसौटी है।

लोभ की वृत्ति सामान्य मनुष्यों में होती है। यहां तक की साधु में भी लोभ की चेतना विद्यमान होता है। कहा गया है कि दसवें गुणस्थान तक भी लोभ का अंश रहता ही है। भले ही वह कमजोर अवस्था में होता है, किन्तु दसवें गुणस्थान में भी उसकी विद्यमानता होती है। आदमी लोभ को कैसे प्रतनु बनाए, इसका प्रयास करना चाहिए।

आयारो आगम में एक निर्देश दिया गया है कि कैसे लोभ की वृत्ति को कम किया जा सकता है। लोभ पर विजय प्राप्त करने के लिए मानव को अलोभ की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। अलोभ की भावना को जगाने का प्रयास करना चाहिए। अलोभ की चेतना को जागृत करने के लिए आदमी को संतोष की चेतना का प्रयास करना चाहिए। पदार्थों की प्राप्ति में संतोष की भावना हो। आदमी को नित्य प्रति अलोभ की भावना को जागृत करने का प्रयास करना चाहिए। अलोभ की भावना जितना-जितना पुष्ट होता जाएगा, संतोष की अनुप्रेक्षा जितनी पुष्ट होगी, लोभ उतना प्रतनु हो सकता है।

श्रावक के बारह व्रतों में पांचवां व्रत है इच्छा परिमाण। इसमें आदमी ऐसा त्याग करे कि इतने स्थान के अलावा स्थान रखने का त्याग है। पदार्थों के उपभोग में सीमा करना और संतोष रखने का प्रयास हो। गृहस्थ भी अपने जीवन में कभी ज्यादा कमाई नहीं हुई तो भी आदमी को संतोष रखने का प्रयास करना चाहिए। ज्यादा कमाई के लिए आदमी को ठगी, चोरी और बेईमानी से बचने का प्रयास करना चाहिए। मानव के जीवन में संतोष रूपी धन का विकास होना चाहिए। संतोष की भावना पुष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ भी अपने जीवन में लोभ को अलोभ से जितने का प्रयास करे। अपने विचारों को संतोष की भावना से भावित करने का प्रयास करना चाहिए।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री मुनि गजसुकुमाल के जीवन प्रसंगों का सुन्दर रूप में वर्णन किया। पावन प्रवचन व आख्यान के उपरान्त अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का आचार्यश्री के श्रीमुख से प्रत्याख्यान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत का संगान किया। श्री प्रताप सिंह सिंघी ने अपनी पुस्तक ‘सचित्र प्रज्ञावान बनो’ आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की।

आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया। डॉ. कुसुम लुणिया ने अपनी लिखित पुस्तक ‘सर्वोत्तम जीवनशैली’ को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। इस संदर्भ में डॉ. लुणिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।