कांकेर(अमर छत्तीसगढ़) 23 अप्रैल। बस्तर संभाग में तेंदूपत्ता तोड़ाई का कार्य ठेकेदारों को दिए जाने से नक्सली लेवी के रूप में ठेकेदारों से करोड़ो की वसूली करते थे। नक्सलियों की शर्तों पर तेंदूपत्ता की तोड़ाई होती थी, ऐसा मुठभेड़ के दौरान नक्सलियों के मिले दस्तावेजों से पुष्टि होती रही है। सरकार ने इस बार नीति बदलते हुए तेंदूपत्ता खरीदी विभाग के द्वारा लेवी पर ग्रहण लगना तय है।
जानकारी के अनुसार 21 वर्ष पहले विभाग तेंदूपत्ता की खरीदी वन विभाग के द्वारा किया जाता था। उसके उपरांत पालिसी बदलते हुए 2004 से समितियों की नीलामी किया जाने लगा और तेंदूपत्ता की तोड़ाई के पहले ही समितियों को ठेकेदार खरीद लेते थे।
ठेकेदार को समितियों के मिल जाने के उपरांत अपने हिसाब से खरीदी करते थे, विभाग का अमला केवल मानिटरिंग करता था। ठेकेदार तेंदूपत्ता संग्राहक तेंदूपत्ता की तोड़ाई करके 50-50 की गड्डी बनाकर सूखने के लिए खाली मैदानों रखते थे और उसके उपरांत ठेकेदार का मुंशी उसको बोरे में शिफ्ट अपने अमले के द्वारा करवाते थे।
इस दौरान ठेकेदार का मुंशी जो खेल खेलता था, उससे समितियों का अमला बेखबर रहता था। ठेकेदार गड्डी में ही खेल खेलता था, ठेकेदारों की पहुँच अधिक होने के कारण ही वे मनमानी करते थे। इसके चलते संग्राहकों को नुकसान भी होता था। तेंदूपत्ता ठेकेदारों का आतंक बना हुआ था, उसका सबसे बड़ा कारण था कि उनको सभी तरह से संरक्षण मिला हुआ था।
पुलिस और नक्सली मुठभेड़ के दौरान नक्सलियों के मिले दस्तावेजों से स्पष्ट है कि नक्सली तेंदूपत्ता के ठेकेदारों से करोंड़ो की लेवी वसूलते थे। नक्सलियों को जो ठेकेदार लेवी नहीं देता था, उसकी समिति में संग्रहण हुए तेंदूपत्ता को आग के हवाले कर देते थे। ठेकेदार प्रथा प्रारंभ होने के शुरआती दौर पर कई घटनाएं होती थी, उसके बाद ऐसा मैनेजमेंट स्थापित हुआ कि कई सालों तक तेंदूपत्ता संग्रहण केंद्र पर आग नहीं लगी।
इससे यह तय हो गया कि ठेकेदारों को पूरा संरक्षण मिलने लगा था। और ठेकेदारों ने तेंदूपत्ता का बड़े स्तर पर खेल खेलते रहे, जिस पर अब विराम लग जाएगा। विभाग के द्वारा तेंदूपत्ता के तोड़े जाने और नक्सलियों को लेवी नहीं मिलने से नक्सलियों की आर्थिक दृष्टिकोण से कमर टूटना तय है।