बिलासपुर (अमर छत्तीसगढ़) जैन धर्म में अष्टान्हिका महापर्व का बहुत महत्व है 6 तारीख से प्रारम्भ हुए अष्टान्हिका महापर्व में बिलासपुर जैन सभा द्वारा श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर क्रांति नगर में श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान प्रारंभ किया गया। विश्व शान्ति की मंगल कामना से प्रारम्भ हुए इस अनुष्ठान के दूसरे दिन मुख्य पात्रों के अलावा सामान्य इंद्र -इंद्राणी और सकल समाज के श्रावक श्राविका शामिल हुए।
बिलासपुर नगर के लिए बड़े ही गर्व की बात है कि देशभर में 200 प्रतिष्ठा कराने वाले प्रतिष्ठाचार्य पंडित डॉ विमल कुमार सोंरया का सानिध्य प्राप्त हो रहा है और श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान को संपन्न कराने हेतु हमारे बीच पंकज भैया जी छतरपुर वाले उपस्थित है जिनके ओजस्वी वाणी और शुद्ध उच्चारण के द्वारा सिद्धचक्र महामंडल विधान संपन्न कराया जा रहा है। प्रातः 7:00 बजे अभिषेक शांतिधारा प्रारम्भ हुआ तत्पचात विश्व शांति की मंगल कामना से विधान प्रारंभ हुआ। विधान को संपन्न कराने में संगीतकार सोनू जैन आगरा वाले अपनी मंडली के साथ उपस्थित है एवं विधान को संगीतमय संपन्न करा रहे हैं। बहुत अधिक संख्या में श्रद्धालु सिद्धचक्र महामंडल विधान में शामिल होकर धर्म लाभ लेक्र पुण्यार्जन कर रहे हैं।
सायं कालीन भक्ति संध्या में पुरुष, महिलायें एवं बच्चे संगीतमय भजनों में मंत्रमुग्ध होकर आरती करते रहे। सांडिकाएलीन भक्ति के पश्चात विधानाचार्य बाल ब्रह्मचारी पंकज भैया ने शास्त्र का वचन किया। उन्होंने शास्त्र प्रवचन में कहा कि मानव कल्याण केवल मनुष्य गति में ही संभव है क्योकि देव गति में सुख भोगने के अलावा समय ही नहीं रहता, उसी तरह नरक गति में कष्ट भोगने से समय ही नहीं बचता और तिर्यंच गति में विवेक ही नहीं रहता, इसलिए आत्म कल्याण के लिए केवल मनुष्य गति ही बचती है। अतः हम सभी को इस भव में आत्म कल्याण के कार्य करते रहना चाहिए, और इसके लिए सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र को धारण कर स्वकल्याण करना ही हमारी गति को सुधार सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि हम सब गुरु के प्रति श्रद्धा का भाव रखना चाहिए। उन्होंने अकाट सत्य के बारे में कहा कि मृत्यु तो सबकी निश्चित है, लेकिन मुख्य बात ये है कि हमने जीवन कैसा जिया।
साथ ही उन्होंने कहा कि भले हमारा जन्म कैसे भी हुआ हो लेकिन मृत्यु समाधि पूर्ण ही होनी चाहिए और अगर हम प्राण त्यागे तो णमोकार मन्त्र का जाप करते हुए या णमोकार मन्त्र सुनते हुए। उन्होंने कहा की सिर्फ मंदिर जी में जाकर भगवान् के मस्तक पर कलश से अभिषेक करना या पूजन करना ही धर्म नहीं है बल्कि अपने कार्य क्षेत्र में निर्मल परिणाम रख कर कार्य करना ही धर्म है क्योंकि हम मंदिर जी केवल कुछ समय के लिए आते हैं, लेकिन अपना अधिकतर समय अपने कार्य क्षेत्र या घर में व्यतीत करते हैं इसलिए इन जगहों पर अपने भाव निर्मल रखकर कार्य करना चाहिए।