अगले जीवन के लिए भी चिंतन करे मानव : मानवता के मसीहा महाश्रमण
-‘चंदन की चुटकी भली’आख्यान का गीतमय वाचन
सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 25 जुलाई ।
सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के तट पर अवस्थित सिल्क सिटी सूरत की धरा पर ज्ञानगंगा को प्रवाहित करने के लिए पधारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अमृतवाणी से सूरतवासियों को तृप्ति प्रदान कर रहे हैं। आचार्यश्री ने सूरतवासियों पर कृपा बरसाते हुए भगवती सूत्र के माध्यम से जीवनोपयोगी सूत्र प्रदान कर रहे हैं। अपने आराध्य की वाणी को सुनने के लिए श्रद्धालु मानों खींचे चले आ रहे हैं।
गुरुवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर से ही मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि भगवती सूत्र के 34वें शतक में बताया गया है कि हमारी दुनिया में अनंत जीव हैं। सिद्ध जीव तो संसार के जन्म-मरण से मुक्त होते हैं, शेष संसारी जीव जन्म-मृत्यु का वरण करने वाले होते हैं। अर्थात् पुनर्जन्म का सिद्धांत है। दो प्रकार की विचारधाराएं हैं- आस्तिकवाद और नास्तिकवाद। जो स्वर्ग, नरक, आत्मा, परमात्मा, पुण्य-पाप, मोक्ष, पूर्वजन्म, पुनर्जन्म को मानने वाला आस्तिक होता है। इसके विपरीत नास्तिक का विचार होता है। वह आत्मा, पुण्य-पाप, मोक्ष, कर्मफल, पुनर्जन्म को नहीं मानता है। आस्तिक विचारधारा में आत्मा और शरीर को अलग-अलग माना गया है। आत्मा और शरीर को अलग-अलग मानना आस्तिक विचारधारा एक सिद्धांत है। आत्मा इस जन्म से पहले भी कहीं और थी और आगे भी कहीं जा सकेगी। जिस तरह आदमी पुराने कपड़े बदलकर नये कपड़े धारण कर लेता है, उसी प्रकार आत्मा इस स्थूल शरीर का त्याग कर नये शरीर को धारण कर लेती है। पुनर्जन्म के अनेक नियम जैन आगमों में प्राप्त होती हैं। जीव एक योनि से दूसरी योनि में जाता है तो उसके बीच में उसे कितना समय लगता है। इस गति के दो भाग होते हैं-ऋजु गति और वक्र गति।
एक जीव को मोक्ष में जाने के लिए एक ही समय लगता है। वहीं संसारी जीव को एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने के लिए सबके लिए अलग-अलग समय लगता है। किसी को एक समय, दो समय, तीन समय और चार समय के अंतराल की बात हो सकती है। बहुत ही अल्प समय में आत्मा अपने अगले जन्म में पैदा हो जाती है। पुनर्जन्म के संदर्भ में आदमी को यह ध्यान देना चाहिए कि मेरा अगला जन्म कहां हो सकेगा, ऐसा चिंतन करने का प्रयास होना चाहिए।
गृहस्थों के जीवन में किसी-किसी को सभी प्रकार की भौतिक अनुकूलताएं प्राप्त हैं। शरीर स्वस्थ, प्रतिष्ठा, परिवार आज्ञाकारी, समस्त संपदाओं की परिपूर्णता पहले अर्जित पुण्य का फल होता है। जिसे आदमी वर्तमान में भोगता है। आदमी को यह सोचना चाहिए कि यह तो मैं पिछली कमाई भोग रहा हूं तो मैं आगे के लिए क्या करता हूं। धर्म-ध्यान के लिए समय लगाना, जीवन में त्याग-तपस्या, सद्गुणों के विकास आदि के द्वारा आगे के लिए पुण्य की कमाई करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को आगे का चिंतन भी करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जन्मदिवस पर इस बात के लिए सतर्क होना चाहिए कि जीवन का एक वर्ष चला गया। इसलिए आदमी को आगे के जीवन में भी चिंतन करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित पुस्तक ‘चन्दन की चुटकी भली’आख्यान के कुछ पद्यों का सुमधुर संगान करते हुए अपने शरीर की सुन्दरता पर अहंकार नहीं करने की भी प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के आख्यान के उपरान्त मुनि मार्दवकुमारजी व मुनि आकाशकुमारजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने बहिर्विहार में चतुर्मास कर गुरु सन्निधि में पहुंचे मुनि आकाशकुमारजी व मुनि हितेन्द्रकुमारजी को पावन आशीर्वाद प्रदान किया।