अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ), 29 जुलाई। प्रत्येक प्राणी के जीवन में सुख-दुःख, खुशी-गम का आना जाना लगा रहता है। हमे मन के अनुकूल मिले तो खुशी व सुख की अनुभूति होती है ओर मन के विपरीत हो जाए तो दुःख ओर गम महसूस होता है। रति या अरति भाव हमारी मैत्री भावना के अनुकूल नहीं है। कैसी भी परिस्थिति बने जीवन में सर्वमंगल की कामना के साथ मैत्री भाव हमेशा बने रहने चाहिए।
ये विचार सोमवार को पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा ने श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जिनके ह्दय में मैत्री का वास होता है वह सबका मित्र होता है।
दुःख को अपने प्रतिकूल मानने की बजाय यह सोचना चाहिए कि वह हमे अपना भविष्य व जीवन सुंदर बनाने की शक्ति देता है। दुःख से घबराने की बजाय उसे मित्र भाव के रूप में स्वीकार करेंगे तो वह अधिक समय तक हमे कष्टदायी नहीं रहेगा। धर्मसभा में सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि जीवन बहुत छोटा ओर हमारे पास करने के लिए कई कार्य है। हमे जो करना है उसके लिए संकल्पित ओर दृढ़ निश्चियी होना पड़ेगा। समय व्यर्थ चला गया तो पछतावा रह जाएगा।
जीवन में कितनी भी प्रतिकूलता आए कभी मन को हार नहीं माननी चाहिए क्योंकि कहा भी गया है मन के जीते जीत है ओर मन के हारे हार। इसलिए हम हार के बाद भी मन को सकारात्मक रखेंगे तो भविष्य में जीत में मिल सकती है। उन्होंने कहा कि हमे हमेशा स्वयं पर विश्वास व भरोसा रखना चाहिए ओर यह मानना चाहिए कि हमारे लिए कोई कार्य कठिन या असंभव नहीं है। हार जीत जीवन का हिस्सा है इसलिए जीत मिलने पर अति उत्साहित नहीं होना चाहिए तो हार मिलने पर निराश नहीं होना चाहिए।
धर्मसभा में युवा रत्न श्री नानेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि जिस ह्दय में कुटिलता, कठोरता, माया ओर कपट की गांठ हो, सरलता, नम्रता व मृदुलता नहीं हो उसमें मैत्रीभाव नहीं टिक सकता है। वह अपने ह्दय की कुटिलता के कारण किसी के गुण ग्रहण नहीं कर सकता है। उसकी दृष्टि हमेशा दोषों पर ही रहेगी ओर दोष दर्शन की प्रवृति से वह अपने अंदर दोषों का ही संचय करता रहेगा। मानव जन्म पाकर उसमें प्रगति व उन्नति के लिए, मानवता व मानवीय गुण धारण करने के लिए भी सरलता आवश्यक बताई गई है।
मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि जीवन में उपकार करने वाले भी होते है तो अपकार करने वाले भी होते है। जो हम पर उपकार करते है उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए ओर जो हमारे उपकार करने के बाद भी अपकार करे वह कृतध्न होते है। परमात्मा व माता-पिता का हम पर अनंत उपकार है जिनके कारण हम इस संसार में है। उनके प्रति सदा आदर व सम्मान के भाव हमारे मन में होने चाहिए। जो इनका उपकार नहीं मानता वह कृतध्न होता है। ऐसे कृतध्न व्यक्ति को जीवन में सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती।
उन्होंने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए बताया कि किस प्रकार वीर प्रभु के आगमन के बाद सुबाहुकुमार के मन में वैराग्य के भाव उत्पन्न होते है। धर्मसभा में प्रार्थनार्थी श्री सचिनमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमचंद बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।
द्धय गुरूदेव जयंति समारोह के उपलक्ष्य में सामूहिक तेला तप अगस्त में
चातुर्मास के विशेष आकर्षण के रूप में 15 अगस्त को द्वय गुरूदेव श्रमण सूर्य मरूधर केसरी प्रवर्तक पूज्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. की 134वीं जन्मजयंति एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म.सा. ‘रजत’ की 97वीं जन्म जयंति समारोह मनाया जाएगा। इससे पूर्व इसके उपलक्ष्य में 11 से 13 अगस्त तक सामूहिक तेला तप का आयोजन भी होगा। चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए तय है। प्रति रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता हो रही है।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627