दुर्ग(अमर छत्तीसगढ़) 19 अगस्त। रक्षाबंधन के पूर्व दिवस पर जय आनंद मधुकर रतन भवन बांधा तालाब दुर्ग में बड़ी संख्या में भाई-बहनो के जोड़े ने वज्रपंजर स्रोत एवं नवकार महामंत्र का अनुष्ठान किया अनुष्ठान के पश्चात बहनों ने साध्वी मंडल के मंत्रोचार के बीच अभिमंत्रित रक्षा कवच सुत भाइयों की कलाई पर बांधा एक वर्ष से 80 वर्ष तक के भाई बहनों के जोड़ों ने इस भाई बहन केअनुष्ठान में हिस्सा लिया ।
पांच लकी ड्रा के माध्यम से भाई बहनों के जोड़ों का लकी ड्रा निकाला गया जिनमें डा चंदर बाफना, टीकम छाजेड़ नेमीचंद चोपड़ा राजेंद्र संचेती हिमांशु चोपड़ा का नाम लक्की ड्रा में निकाल गया इन भाइयों की कलाई पर उनकी बहनों ने राखी बांधी और भाइयों ने चुनरी ओड़ा कर बहनों का अभिनंदन किया और उनकी रक्षा का संकल्प लिया इस बीच बहनों ने भी अपने भाइयों की दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की हो समाज के कल्याण जीवदया में उनके भाइयों का अहम् योगदान हो परमपिता परमात्मा से ऐसी मंगल कामना की ।
साध्वी सुवृद्धि श्री जी का सिद्धि तप में आज चौथा उपवास
जय आनंद मधुकर रतन भवन बांध तालाब दुर्ग में जैन समाज के श्रावक श्राविका सिद्धी तप की अराधना एकासना से कर रहें हैं वहीं साध्वी सुवृद्धि श्री जी उपवास के व्रत के साथ सिद्धि तप कर रहें हैं । श्रीमती किरण संचेती 32 उपवास की तपस्या गतिशील हे
इसी तरह सुप्रिया छाजेड़ सरला बरडिया निशा श्रेयांश सेठिया की तपस्या गतिमान है।
11 घंटे के नवककार महामंत्र की आराधना एवं अनुष्ठान जय आनंद मधुकर रतन भवन बांध तालाब दुर्ग में गतिमान है आज के नवकार महामंत्र जाप के लाभार्थी परिवार जमुना देवी नीलम कुमार बाफना परिवार थे ।
जय आनंद मधुकर रतन भवन बांदा तालाब दुर्ग की धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी सुमंगल प्रभा जी ने कहा.मनुष्य का मन भी अद्भुत है। मनुष्य का मन ही संसार का आधार है। यही मुक्ति का मेरुदण्ड है। संसार में अगर नरक का कोई सेतु है तो वह मनुष्य का मन है और अगर स्वर्ग का कोई हेतु है तो वह भी मन ही है। मनुष्य के पास धन है पद है प्रतिष्ठा है मगर चैन नहीं है शांति नहीं है आनंदित होने का उपाय नहीं है। जिसका मन शांत है बोझ से मुक्त हो चुका है वहव्यक्ति जीवन में मुक्ति को जी रहा है।
शांति सिद्धि और मुक्ति पाने का सरळ रास्ता, अध्यात्म की यात्रा को चेतना की सहज सर्वोच्च स्थिति तक पहुंचाने के लिए तीन अमृत मन्त्र है- सरलता, सहजता और सजगता । जीवन हर कार्य स हर व्यवहार और हर भाव सरलता से परिपूर्ण हो । हर अच्छे बुरे विचारों के प्रति भी सहजता बरकरार रखें। हमारी हर प्रवृत्ति हर वृत्ति के प्रति सजगता का दीप जलता रहे। बस, इतनी जागरुकता ही साधना की आत्मा है।
हम अपने मन की ओर झांककर देखें क्या हमारा मन दो मिनिट के लिए भी शांति का सुकुन देख रहा है। क्या हम अपने मन में कुछ पलों के लिए भी मुक्ति का माधुर्य जी रहे है। आज दुनियां में शरीर से रुग्ण कम है मन से रुग्ण ज्यादा है। भीतर में ना जाने कितनी अशांति, अहंकार हमने पाल रखें हे ।
जानकारी : नवीन संचेती दुर्ग