गुरू द्वय पावन जन्मोत्सव कार्यक्रम के अंतिम दिन बुधमलजी मसा की जयंति पर नवकार मंत्र जाप
अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ),19 अगस्त। सप्त दिवसीय गुरू द्वय पावन जन्मोत्सव कार्यक्रम के अंतिम दिन श्रद्धा एवं भक्तिभाव के साथ पूज्य बुधमलजी म.सा. की जयंति मनाई गई। इस अवसर पर श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ एवं श्री आदिनाथ चेरिटेबल ट्रस्ट अम्बाजी के तत्वावधान में श्री अंबिका जैन भवन में आयोजित कार्यक्रम में पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा आदि ठाणा के सानिध्य में नवकार मंत्र का जाप कर सर्वमंगल व सर्व सुखशांति की कामना की गई। रक्षाबंधन का पर्व होने से जीवन में धर्म की रक्षा किस तरह कर सकते इस पर भी चर्चा की गई।
युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा ने कहा कि मरूधर केसरीजी के गुरूदेव महाश्रमण वचनसिद्ध श्री बुधमलजी म.सा. का जीवन श्रावकों के लिए प्रेरणादायी है। उनके जीवन से गुणों को अपना हम अपना कल्याण कर सकते है। उन्होंने गुरू द्धय पावन जन्मोत्सव कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए स्थानीय श्रीसंघ को भी हार्दिक साधुवाद अर्पित किया। सेवारत्न हरीशमुनिजी म.सा. ने कहा कि श्रावक का कल्याण धर्म से जुड़ने पर ही हो सकता है। आप संतों से भले न जुड़े पर धर्म से जुड़ जाए तो जीवन सार्थक हो जाएगा।
हमारी कथनी व करनी में अंतर होने से साधना का फल भी नहीं मिलता है। महाश्रमण वचनसिद्ध श्री बुधमलजी म.सा. जैसे महापुरूषों का जीवन धन्य है जिन्होंने जिनशासन की समर्पित भाव से सेवा की ओर जिनके कारण मरूधर केसरी जैसे संतरत्न समाज को प्राप्त हुए। उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन का त्यौहार धर्म रक्षा का भी संदेश देता है।
धर्म के प्रति हमारी आस्था कभी कम नहीं होनी चाहिए ओर जब भी जरूरत हो धर्म रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए। युवारत्न नानेशमुनिजी म.सा. ने कहा कि महान संतो ंके जीवन से हमेशा प्रेरणा मिलती है। श्रावक व्रत स्वीकार करने पर ही हम जिनशासन के सच्चे श्रावक हो सकते है। जब तक श्रावक व्रत स्वीकार नहीं करेंगे हमारा श्रावक कहलाना सार्थक नहीं होगा।
जीवन में जितना अधिक हो सके तप,त्याग करते रहने की भावना हमेशा रहनी चाहिए। मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने रक्षासूत्र के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि जो रक्षा करने योग्य होता है उसकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधा जाता है। बहन भाई की कलाई पर उसे बांधती है। हम अपने धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा।
उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन का जैन धर्म में बड़ा महत्व है। इसी दिन 700 मुनिराजों पर आए उपसर्ग का निराकरण एवं रक्षा श्री विष्णुकुमार मुनि ने की थी ओर अहंकारी बालि का अहम भी तोड़ा था। श्रमण संस्कृति की रक्षा का यह पर्व रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि यह पर्व अपनी आत्मा ओर अपने धर्म की रक्षा करने का दिन है।
धर्मसभा में प्रार्थनार्थी सचिनतमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। धर्मसभा में अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया। जाप में अम्बाजी व आसपास के विभिन्न क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं शामिल हुए।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627