पर्युषण का मतलब है प्रदुषण मुक्त, हो तो उसे साफ करो- साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

पर्युषण का मतलब है प्रदुषण मुक्त, हो तो उसे साफ करो- साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर स्वामी जिनालय मैं चल रहे आध्यात्मिक चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान बुधवार को साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कहा कि पर्यूषण को सबसे श्रेष्ठ पर्व माना गया है। इसमें कम से कम पाप कर जीवन का निर्वाह करना बताया गया है। यह पर्व परमात्मा की आज्ञा का पालन करने का पर्व है। पर्यूषण हमें सिखाता है कि हमें कम से कम हिंसा के साथ भोजन करना है।

साध्वीजी कहती है कि लोग फैशन के पीछे दौड़ते रहते हैं। इस फैशन और मेकअप के चक्कर में ना जाने हम कितने जानवरों के साथ हिंसा करते हैं। लोगों को यह पता होता है कि जीव हिंसा के बाद ही कॉस्मेटिक्स और साज सज्जा के सामान बनाए जाते हैं। यह जानते हुए भी लोग कहते हैं कि क्या फर्क पड़ता है अगर हम उपयोग ना करें तो कोई दूसरा इन सामान का उपयोग तो करेगा ही और अगर हमने ऐसा किया तो भी कुछ नहीं होगा। ऐसे सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग करके जो व्यक्ति लोगों के सामने व्यक्तिव जमाता है, साधु-मुनि ऐसे व्यक्तियों से मिलना भी करना पसंद नहीं करते हैं।

मन में प्रेम जगाओ

साध्वीजी कहती हैं कि मोती सेठ एक दिन सैर पर कहीं जा रहे थे। उन्हें एक व्यक्ति दिखा जो एक बछड़े को अपने साथ कहीं ले जा रहा था, पर वहां उस बछड़े को मार रहा था। सेठ समझ गए कि वह कसाई है। उन्होंने अपने सेवक को कहा कि जाकर उस कसाई से बछड़े को छोड़ने कहो। सेवक जाता है और कसाई से कहता है इस बछड़े को मत मारो, इसे छोड़ दो। कसाई कहते हैं मैंने पूरी कीमत देकर इस बछड़े को खरीदा है, मैं इसे तुम्हारे कहने पर नहीं छोड़ सकता हूं। देखते ही देखते सेवक और कसाई में विवाद होने लग जाता है। विवाद इतना बढ़ जाता है कि मामला हाथापाई तक पहुंच जाता है। इस विवाद में सेवक के हाथों कसाई की मृत्यु हो जाती है। पुलिस आती है और सेवक को गिरफ्तार कर लेती है। कोर्ट में सुनवाई होती है और सेवक को फांसी की सजा सुनाई जाती है। इस पर मोती सेठ कहते हैं कि गलती मेरी है मैंने ही सेवक को कहा था कि उसे जाकर रोको। सेवा कहते हैं नहीं सेठजी आप को फांसी नहीं होनी चाहिए। आप को फांसी हो गई तो लोगों का उद्धार कैसे होगा। जज ने पूरे मामले को समझा और सेठ को फांसी की सजा सुना दी गई। सेठ से उनकी आखिरी इच्छा पूछने पर उन्होंने आदिनाथ भगवान के मंदिर जाकर दर्शन करने की बात कही। दर्शन करने के बाद सेठ को फांसी के फंदे तक लाया गया और फंदा उनके गले में डाल दिया गया। जल्लाद में रस्सी खींची पर वह रस्सी टूट गई। जल्लाद ने दूसरी रस्सी लगाई वह भी टूट गई। इसके बाद उसने तीसरी रस्सी लगाई वह भी टूट गई। मामला प्रशासन के अधिकारियों के पास गया तो उन्होंने सेठ को माफ कर दिया। सेठ के अंदर जीवों के प्रति प्रेम था इसलिए वे फांसी की सजा से भी बच कर निकल गए।

जीव हिंसा से बचो

साध्वीजी ने बताया कि एक राज्य में राजा की पांच रानियां थी। उनके राज्य में एक आदमी बहुत मजबूर था और उसने चोरी करने की सोची। उसने कभी चोरी नहीं की थी, वह पहली बार चोरी करने गया और पकड़ा गया। राजा ने उसे फांसी देने की सजा सुनाई। जब उसे सजा देने सैनिक अपने साथ लेकर जा रहे थे तो पहली रानी की नजर उस पर पड़ी। रानी ने उसे दया के दृष्टिकोण से देखा तो रानी को चोर में अपना भाई नजर आया। रानी राजा के पास दौड़ते हुए गई और कहा कि यह मेरे भाई जैसा है मुझे एक दिन इसकी सेवा करने के लिए दे दो। राजा अनुमति देते हैं। इसके बाद रानी उस चोर की अपने भाई की तरह सेवा करती है। उसके सामने छप्पन भोग रखा जाता है और खूब सत्कार किया जाता है। अब अगले दिन उसे सजा देने की बारी होती है तब दूसरे रानी की नजर उस पर पड़ती है। दया भाव में आकर वह भी राजा से आज्ञा लेकर उस चोर की सेवा करने में लग जाती है। ऐसा चार दिन चलता है। पांचवें दिन पांचवी रानी जो कि राजा की ओर से तिरस्कृत रहती है, उसकी नजर उस चोर पर पड़ती है। वह राजा के पास जाती है और कहती है मैंने आपसे कभी कुछ नहीं मांगा पर आज मांगती हूं कि उस चोर को अभयदान दे दो। राजा सोचते हैं कि मैंने हमेशा इस तिरस्कृत रखा, अपमानित किया पर फिर भी आज पहली बार यह कुछ मांग रही है तो इस दे देना चाहिए। राजा ने चोर को जीवनदान दे दिया। उसे छोड़ दिया गया तो पांचवी रानी ने उसे उसकी सेवा करने के लिए बुलाया। उस रानी के पास तो बहुत कुछ था नहीं तो उसने सूखी रोटी ही उसे दी। उस चोर ने कहा की चार दिन तक मेरे सामने छप्पन भोग रखा गया लेकिन मौत को सामने देखकर वह भोग मुझे रास नहीं आया। आज जीवनदान मिलने के बाद यह सूखी रोटी मुझे छप्पन भोग से कम नहीं लग रही। साध्वी जी कहती है पर्यूषण पर्व हमें या सिखाता है कि हमें जीव हिंसा नहीं करनी चाहिए।

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