चित्त समाधि पर विशेष कार्यशाला का आयोजन … कैसे करें चित्त समाधि का विकास – मुनि सुधाकर

चित्त समाधि पर विशेष कार्यशाला का आयोजन … कैसे करें चित्त समाधि का विकास – मुनि सुधाकर

रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 29 अगस्त। श्री लाल गंगा पटवा भवन, टैगोर नगर में गतिमान चातुर्मासिक प्रवास अंतर्गत आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री सुधाकर जी व सहवर्ती मुनिश्री नरेश कुमार जी के सान्निध्य में तेरापंथ महिला मंडल द्वारा दिनांक – 29/08/2024 को “कैसे करें चित्त समाधि का विकास” पर विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला में मुनिश्री सुधाकर ने बताया कि आत्मा और परमात्मा के बीच में जो अवरोध है उन्हें समाप्त करना ही चित्त समाधि है। मुनिश्री ने कहा कि हमारे जीवन में जो असंयम और परिग्रह की भावना है वहीं हमारे दुःखों का प्रमुख कारण है। जीवन शैली तो संयम प्रधान होनी चाहिए अर्थात चलने में संयम, बोलने में संयम, खाने में संयम, आवेश और आवेग में संमय। मुनिश्री ने आगे बताया कि जहा क्रिया होगी वहां प्रतिक्रिया अपेक्षित है परंतु हमें उस क्रिया की प्रतिक्रिया में उलझना नहीं है क्योंकि प्रतिक्रिया वेदना देती है फिर चाहे वह शरीर की हो या मन की। मुनिश्री ने कहा कि जिसे सहना आयेगा उसे ही सुख से रहना आयेगा। उपयुक्त को उन्होंने ने उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को एक परिवार की कथा से समझाने का प्रयास किया।


मुनिश्री ने तीन प्रयोग चित्त समाधि के विषय में बताएं – पहला प्रतिक्रिया नहीं समीक्षा होनी चाहिए। दूसरा प्रतिस्पर्धा नहीं प्रेरणा होनी चाहिए और तीसरा पदार्थ की प्रतिबद्धता नहीं अप्रतिबध्दता होनी चाहिए। मुनिश्री ने आगे कहा कि हमारे जीवन में आसक्ति की जगह अनासक्ति का भाव होना चाहिए। जिससे हमारे जीवन में ईर्ष्या और लोभ की भावना कम हो सके। “न तेरा है न मेरा है दुनिया रंग बसेरा है” कि भावना का विकास होना चाहिए।


मुनिश्री नरेश कुमार जी ने कहा कि धर्म हमें असमाधि से समाधि की ओर ले जाने वाला होता है। मंगलाचरण तेमम व आभार मधुर जी बच्छावत द्वारा किया गया। कार्यशाला में कर्नाटक शिमोगा से पधारे श्री चंदनमल जी ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त कि। श्री तेजस बूरड़ अपनी 11 की तपस्या का प्रत्याखान लेकर मुनिश्री की सन्निधि में पधारे।

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