गोड़ादरा स्थित महावीर भवन में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में चातुर्मासिक प्रवचन
सूरत(अमर छत्तीसगढ), 9 अगस्त। जीवन में सांसारिक बंधनों में उलझ गए तो आत्मकल्याण नहीं रह पाएंगे। संसार का जीवन जीते हुए भी हमे अपने परम लक्ष्य को हमेशा याद करते रहना चाहिए ओर उसके अनुरूप ही हमारा आचरण होना चाहिए। सांसारिक मोह माया प्याज के छिलके के समान है जिनसे दूर ही रहना चाहिए। जिनवाणी सुनने से हमे सांसारिक बंधनों से मुक्त होने में सहायता मिलेगी।
ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने गुरूवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि हमारा जिनशासन बहुत सहज व सरल है जिसका अनुगामी कोई भी बन सकता है।
धर्म का चार द्वारा क्षमा,संतोष,सरलता व नम्रता है। क्षमा धर्म का गुण है। धर्म में प्रवेश वो ही करेगा जो गम खा सकता है। दूसरा द्वारा संतोष है। जहां दया है वहां धर्म है। धर्म का वास हमेशा सरल ह्दय में होता है। उन्होंने कहा कि आज हमारे जीवन में संतोष का अभाव होने से कई तरह की परेशानियां आ रही है। जो संतोषी जीवन जीना सीख लेता है वह सदा सुखी रहता है।
जीवन का कल्याण करने के लिए हमेशा किसी की विराधना से बचना चाहिए। तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि दान वो ही दे सकता जो दिलदार होता है। दान कभी व्यर्थ नहीं जाता बल्कि वापस लौटकर आता है। दान की महिमा इस लोक में ही नहीं देवलोक में गाई जाती है। इसलिए जीवन में जब भी अवसर मिले दान करते रहे। दान देने वाला हमेशा महान होता है।
उन्होंने कहा कि कर्मो का राजा मोहनीय कर्म है। भावो-भावों से कर्म निर्जरा होती है। हम इस जन्म में जिनशासन की दलाली करेंगे तो अगले भव में भी हमे जैन धर्म प्राप्त होगा। उन्होंने श्रावक के 12 व्रत में से छठे व्रत दिशा परिणाम व्रत के बारे में समझाना शुरू करते हुए इसके प्रत्याख्यान भी कराए। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा।
गोड़ादरा संघ में लगा त्याग तपस्याओं का ठाठ
चातुर्मास में महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा से गोड़ादरा संघ के तत्वावधान में धर्म ध्यान व तप साधना का दौर निरन्तर जारी है। प्रवचन हॉल उस समय तपस्वी की अनुमोदना में हर्ष-हर्ष, जय-जय के जयकारों से गूंजायमान हो उठा जब पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद से सुश्राविका शिमलाजी सांखला ने 16 उपवास, रतनलालजी हिंगड़ ने 7 उपवास, प्रमोदजी नाबेड़ा ने 5 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। बच्चों के लिए 15 दिवसीय चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप आराधना के तहत शुक्रवार को 6 द्रव्य उपरान्त त्याग रहा।
मेड़ता सिटी से पधारे पवनजी झामड़, ब्यावर से पधारे जवरीलाल संदीपकुमारजी खाब्या सहित सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलालजी नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राकेशजी गन्ना ने किया। चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है। प्रतिदिन दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक धर्म चर्चा का समय तय है।
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, लिम्बायत,गोड़ादरा,सूरत
सम्पर्क एवं आवास व्यवस्था संयोजक-
अरविन्द नानेचा 7016291955
शांतिलाल शिशोदिया 9427821813
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627